Monday 6 April, 2009

शीर्षकहीन कविता

ये एक कोशिश, मेरी, एक कविता लिखने की, आज तक कोई शीर्षक "title" नहीं दे पाया, ना ही देना चाहता हूँइसे मैं किसी दायरे में कैद नहीं करना चाहता था


तुमने प्रेम पिंजरे में कैद किया,
हमसे सारे करतब करवा .....
अब तुम हो गई हो बेवफा

कुछ दिन पहले आया था,
मिलने का तो बहाना था,
बस, जी भर के तुझे देख जाना था

ना जाने फिर कब मिलोगी,
भीड़ में कब खो जाओगी,
हमे तड़पता हुआ छोड़ चली जाओगी

अरे, छोड़ने का तो बहाना हैं,
मिलने किसी और से जाना हैं,
हे बेवफा, तुझे तो उम्र भर हसना ही हैं

तेरे हर एक आंसू कीमती हैं ना,
इसे तुम संभाल के रखना,
कभी मुझ जैसों के लिए ना बहाना

नफरत तुमने नहीं दिया था, हमने ख़ुद मांग लिया,
प्यार तुमने कहाँ किया था, गलतफहमियों का था मैं शिकार हुआ,
दिल तुमने नहीं तोडा था, हमने ख़ुद तुड़वा दिया

मानता हूँ दिल मेरा बड़ा नहीं,
पर वह इतना छोटा भी तो नहीं,
हे बेवफा, दिल की गहराई को देख, झरोके को नहीं.

मेरे अन्दर के आग से पूरी दुनिया को जला दूँ,
माफ़ी तेरे हर एक गलती को मैं कर दूँ,
पर तेरी यह बेवफाई, बोल इसका मैं क्या करुँ?

ज़माने का दस्तूर, कि इस बेवफाई को लौटा दें
पर दिल मेरा कहें, कि तुझे सिर्फ़ प्यार दें,
दुआ हैं मेरी, कि तेरे क़दमों में फूल हो, कांटे कोई ना दें

तुझे तन्हाई में खोने नहीं देंगे,
तेरे दामन पर बेवफाई का दाग लगने नहीं देंगे,
तुझे प्यार दिया था, प्यार ही देंगे

दुख हैं, कि मैं तुझे समझ ना सका,
तेरे दिल के अन्दर मैं देख ना सका,
तेरा एक अच्छा साथी मैं बन ना सका

काश समझ पाता मैं तेरा इशारा,
कि नहीं मिल सकता तुझसे सहारा,
तो आज ना होता मैं इतना बेसहारा

खैर, गलती ना तेरी हैं, ना मेरी हैं,
सब गलती मेरी किस्मत का,
जिससे लिखना पड़ा किस्सा मेरे दुर्भाग्य का


मगर फिर भी, तुमने ही तो प्रेम पिंजरे में कैद किया..............................

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